Monday, August 6, 2018

चुप रह के

क्या खो दिया था चुप रहके ..
और क्या पा लिया था कुछ कह के
"कहना" ? या "चुप रहना" ?
मन चाहता था बस इन्ही दो पर्वतों के बीच बहना I
लेकिन किसी ओर तो ज़रूरी था रुख़ मोड़ना !
कहा तो लफ़्ज़ों की तीखी नोख चीर गयी भावनाओं के बादल को ,
चुप रहा तो समंदर से भी गहरी चोट पहुँची सीने को !
यूँ तो बड़ा ही मुश्किल है समझना कि क्या बदल गया चुप रहके और
क्या संवर गया कुछ कह के I
लेकिन यह संकोच तो ना रहा मन मे की उड़ने दी हमने,
अपने आखों के सामने, अपनी ज़िंदगी की डोर ,
एक दर्शक बनके I 
- The Curious Wizard

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